इहाँ भानुकुल कमल दिवाकर। कपिन्ह देखावत नगर मनोहर।।
सुनु कपीस अंगद लंकेसा। पावन पुरी रुचिर यह देसा।।
जद्यपि सब बैकुंठ बखाना। बेद पुरान बिदित जगु जाना।।
अवधपुरी सम प्रिय नहिं सोऊ। यह प्रसंग जानइ कोउ कोऊ।।
जन्मभूमि मम पुरी सुहावनि। उत्तर दिसि बह सरजू पावनि।।
अति प्रिय मोहि इहाँ के बासी।मम धामदा पुरी सूख रासी।।
हरषे सब कपि सुनि प्रभु बानी। धन्य अवध जो राम बखानी।।
भावार्थ
रामचरित मानस में प्रभु श्री राम ने अपने श्री मुख से अयोध्या धाम का बखान किया है.
यहाँ विमान से सूर्य कुलरूपी कमल को प्रफ्फुलित करने वाले सूर्य, राम वानरों को मनोहर नगर दिखला रहे हैं वे कहते हैं हे सुग्रीव हे अंगद हे लंकापति विभीषण सुनो. यह पूरी पवित्रस है और यह देश सुन्दर है. यद्यपि सबने बैकुंठ की बड़ाई की है यह वेद पुराणों में प्रसिद्द है और समस्त जगत जानता है , परन्तु अवधपुरी के सामान मुझे वह भी प्रिय नहीं है. यह बात बिरले ही जानते हैं. यह सुहावनी पूरी मेरी जन्मभूमि है. इसके उत्तर दिशा में जीवों को पवित्र करने वाली सरयू नदी बहती है. जिसमें स्नान करने से मनुष्य बिना परिश्रम के ही मेरे समीप निवास (सामीप्य मुक्ति ) पा जाते हैं. यहाँ के निवासी मुझे बहुत ही प्रिय हैं. प्रभु की वाणी सुनकर सब वानर हर्षित हुए और कहने लगे कि जिस अवध की स्वयं राम ने बड़ाई की, वह अवश्य ही धन्य है .
सुरक्षित, अविस्मर्णीय, धर्म नगरी दर्शन